Meet Kaviraj Allahabadi, a B.Tech 1st yr student of MMMUT. He started diving in Hindi literature from the 7th standard of his school life. He has his own poetry page with more than 2.3k followers. 12k or more than this literature lovers read his poetries.
Kaviraj has always been enthusiastic for writing poetry and this enthusiasm made him winner in many poetry event. Amar Ujala have also published his many poetries. Kaviraj defines himself with these two super lines.
अकबर का इलाहाबादी हु,योगी जी का प्रयागी हु,।
तन से जैसा कैसा भी हु,पर मन से वैरागी हु।
Read the full poetry here
एक अरसा बीत गया हो जैसे,
फिर से उस से बात हुए,
दिल की इस सुखी धरती पर,
बे मौसम बरसात हुए,
रोज रात यादो के बादल ,
घुमड़ घुमड़ कर आ जाते है,
अकड़ दिखाते मुझको आकर,
बात बात पर रुला जाते है,
दिल के इस क्रन्दन से,
कब आजाद करोगी तुम,
छूटे जोड़ो के पंछी से
फिर कब बात करोगी तुम।
न संदेश न कोई फ़ोन कॉल,
न किया कभी तुमने ईमेल,
मेरी सुध तुम ली होती तो,
बन जाता अपना तालमेल
कौवा ,कबूतर और चकोतर से,
चिट्ठी तुम भिजवा देते ,
या सूरज की पहली किरणों से तुम ,
अपना संदेशा कहलवा देते,
तुम्हारा शहर नही था दूर,
पवन राज को तुम बात बताते,
गंगा की लहरों से कहती,
या मेघो को हमराज बनाते।
अगर तुमने सुध ली होती तो,
हिचकी भी संदेशा लाती,
तुम अगर रातो से बातें करती,
वो भी दुख में सो न पाती,
ज्येष्ठ दुपहरिया से तुम कहती तो,
वो भी थोड़ा नम हो जाती,
सांझ शाम से तुम कहती तो,
उसकी रोशनी और कम हो जाती,
सावन से तुम कहना मत ,
उसके तेवर तुम सहना मत,
मुझसे भी अब सहा नही जाता,
मेरे दिल मे तुम रहना मत,