ये कहानी है शरद पटेल नाम के युवा की जिसने पिछले तीन साल में 225 और इस कोविड महामारी के दौरान 30 लोगों को छोटे-छोटे बिजनेस शुरु कराकर आत्मनिर्भर बनाया है। ये सभी वो लोग हैं जिन्हें हालातों से मजबूर होकर भीख माँगना पड़ा। इनमें से कुछ वो लोग थे जिनके कोरोना और लॉकडाउन ने रोजगार छीन लिए थे तो कुछ वो थे जो किसी हादसे में दिव्यांग हो गये। इनमें से एक वो भी था जिसकी दुकान पर दबंगों ने कब्ज़ा कर लिया और पत्नी को मार डाला। एक वो भी था जिसे कुष्ट रोग हो गया था तो घरवालों ने निकाल दिया।
शरद पटेल ने बताया की “हम लगभग सात सालों से इन भिक्षुकों (शरद उन्हें भिखारी नहीं कहते) के बीच काम कर रहे हैं। शुरुआत के तीन चार साल सरकार के साथ मिलकर पैरोकारी की लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला। थक-हारकर मैंने व्यक्तिगत कुछ समाजसेवियों से, कुछ संस्थाओं से मदद लेकर इन्हें आत्मनिर्भर बनाने की ठान ली। पिछले तीन साल में 200 से ज्यादा लोगों को छोटे-छोटे माइक्रो बिजनेस करवाए है, 209 लोगों को उनके अपनों से मिलवा दिया है, इनके बच्चों को पढ़ने के लिए एक निशुल्क पाठशाला खोल दी है,” शरद पटेल ने अपना अनुभव साझा किया।
भिखारियों को भीख माँगना छुड़वाकर उन्हें रोजगार से जोड़कर समाज की मुख्यधारा में सम्मानपूर्वक जीवन जीने का हौसला और हिम्मत देने वाले शरद पटेल बताते हैं, “जो लोग एक बार भीख मांगने लगते हैं उन्हें भीख माँगना छुड़वाकर रोजगार शुरु करने के लिए प्रेरित करना इतना आसान काम नहीं है। रोज फील्ड जाकर इनके साथ एक रिश्ता बनाना पड़ता है, इन्हें भरोसे में लेना पड़ता है, काउंसलिंग करनी पड़ती है तब कहीं जाकर ये शेल्टर होम पर आते हैं। एक बैच में 20-25 लोगों को एक साथ ले आते हैं। लगभग छह महीने की कड़ी मेहनत के बाद इनके व्यवहार में परिवर्तन कर इन्हें छोटे-छोटे माइक्रो बिजनेस शुरु करा पाते हैं।”
सैकड़ों भिखारियों की जिंदगी बदलने वाले तीस वर्षीय शरद पटेल मूल रुप से उत्तर प्रदेश के हरदोई जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर माधवगंज ब्लॉक के मिर्जागंज गाँव के रहने वाले हैं। शरद लखनऊ में 2 अक्टूबर 2014 से ‘भिक्षावृत्ति मुक्त अभियान’ चला रहे हैं। शरद ने 15 सितंबर 2015 को एक गैर सरकारी संस्था ‘बदलाव’ की नींव रखी जो लखनऊ में भिखारियों के पुनर्वास पर काम करती है। शरद ने 3,000 भिक्षुकों पर एक रिसर्च किया जिसमें 98% भिक्षुकों ने कहा कि अगर उन्हें सरकार से पुनर्वास की मदद मिले तो वो भीख माँगना छोड़ देंगे। राजधानी लखनऊ में जो लोग भीख मांग रहे हैं उनमे से 88% भिखारी उत्तर प्रदेश के जबकि 11% अन्य राज्यों से हैं। जो लोग भीख मांग रहे हैं उनमे से 31% लोग 15 साल से ज्यादा भीख मांगकर ही गुजारा कर रहे हैं।
आज की चकाचौंध से कोसों दूर, बहुत ही साधारण पहनावे में एक बैग टांगकर शरद अकसर आपको भिखारियों से बाते करते हुए लखनऊ में दिख जायेंगे। शरद पटेल बताते हैं, “राजधानी में पहले से ही भिक्षुकों की संख्या कम नहीं थी लेकिन इस कोरोना में ये संख्या और ज्यादा बढ़ गयी है। अभी भीख मांग वालों में बच्चों की संख्या भी बढ़ गयी है। इस कोरोना में 30 लोगों को भीख माँगना छुड़वाकर उन्हें रोजगार से जोड़ा है। इनमें से कोई सिलाई कर रहा है, कोई सब्जी बेच रहा कोई खिलौने की दुकान चला रहा। इनके व्यवहार परिवर्तन में समय तो बहुत लगता है क्योंकि भीख मांगते-मांगते ये नशे के आदी हो जाते हैं। हमारी कोशिश रहती है छह महीने में एक भिक्षुक को रोजगार से जोड़ दें।”
उत्तर प्रदेश भिक्षावृत्ति प्रतिषेध अधिनियम 1975 में इन भिक्षुकों के लिए क्या-क्या सुविधाएँ हैं ये जानने के लिए शरद ने ‘सूचना का अधिकार कानून 2005’ से जानकारी हासिल की। इस जानकारी में ये निकल कर आया कि उत्तर प्रदेश के सात जिलों में आठ राजकीय प्रमाणित संस्था (भिक्षुक गृह) का निर्माण कराया गया है। इन भिक्षुक गृहों में 18-60 वर्ष तक के भिक्षुकों को रहने खाने, स्वास्थ्य तथा रोजगारपरक प्रशिक्षण देने तथा शिक्षण की व्यवस्था की गयी, जिससे भिक्षुओं को मुख्य धारा से जोड़ा जाए और उन्हें रोजगार मुहैया कराया जाए। लेकिन इनमें एक भी भिखारी नहीं रहता है। इन भिक्षुक गृहों का सही क्रियान्वयन न होने से यह योजना सिर्फ हवा हवाई साबित हो रही है।
भिखारियों के साथ आम तौर पर हम आप कैसा व्यवहार करते हैं? चल भाग, दूर हट। कभी बहुत दया आ गई तो दूर से पैसे दे दिए, या खाना खिला दिया। लेकिन लंबे बाल, फटे और मैले कुचैले कपड़ों के पीछे जो आदमी होता है वो हमारे आप जैसा ही होता। वो भिखारी क्यों बनें? ये सवाल कुछ से पूछ लेंगे तो आप की सोच बदल जाएगी। शरद की मेहनत की बदौलत अब ये भिखारी हाथ नहीं फैलाते ये अपने हाथों से काम करके पेट भरते हैं।
शरद ने बताया, “हमारे पास अभी इतने पैसे और संसाधन नहीं हैं जिससे हम सभी भिक्षुकों को रोजगार से जोड़ सकें। अगर प्रशासन स्तर पर मुझे सहयोग मिले तो हमारा काम और सरल हो जाएगा। अभी दिल्ली की ‘गूँज’ नाम की संस्था हमें सहयोग कर रही है जिनके सहयोग से इस covid 19 काल में भी हम इन्हें रोजगार देने में सक्षम हुए हैं। इनके रोजगार में एक बार में जितना भी पैसा खर्च होता है हम वन टाइम लगा देते हैं, ये पैसा इनसे वापसी में नहीं लेते हैं। हर छह महीने पर दूसरा बैच ले आते हैं।”